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क्या आप जानते हैं टीवी के 'रावण' अरविंद त्रिवेदी की अनकही कहानी?

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अरविंद त्रिवेदी: एक अद्वितीय अभिनेता की यात्रा



मुंबई, 7 नवंबर। 1987 में प्रसारित रामानंद सागर का धारावाहिक 'रामायण' न केवल मनोरंजन का साधन था, बल्कि यह दर्शकों की आस्था का भी प्रतीक बन गया था। इस शो के हर पात्र ने दर्शकों के दिलों में अपनी एक खास जगह बनाई, लेकिन अभिनेता अरविंद त्रिवेदी का रावण का किरदार सबसे अलग था।


जब भी टीवी पर रावण की गूंजती आवाज सुनाई देती, दर्शक एक पल के लिए ठहर जाते थे।


अरविंद त्रिवेदी ने रावण के किरदार को इतनी गहराई से निभाया कि लोग उन्हें असल में रावण मानने लगे। जहां भी वह जाते, लोग उन्हें 'रावण' कहकर पुकारते थे, जो उनके अभिनय की शक्ति को दर्शाता है।


8 नवंबर 1938 को मध्य प्रदेश के इंदौर में जन्मे अरविंद त्रिवेदी ने बचपन से ही अभिनय में रुचि दिखाई। पढ़ाई के बाद उन्होंने थिएटर में कदम रखा। उस समय गुजराती रंगमंच काफी सक्रिय था, और उनके बड़े भाई उपेंद्र त्रिवेदी भी इस क्षेत्र में नाम कमा रहे थे। दोनों भाइयों ने मिलकर गुजराती थिएटर और सिनेमा को नई पहचान दी।


अरविंद ने लगभग 300 फिल्मों में काम किया, जिनमें हिंदी और गुजराती दोनों भाषाओं की फिल्में शामिल थीं। 'जेसल तोरल', 'कुंवरबाई नु मामेरू', 'वीर मंगदा वाला', और 'देश रे जोया दादा परदेश जोया' जैसी गुजराती फिल्मों में उनके किरदार आज भी याद किए जाते हैं।


1987 में 'रामायण' के लिए ऑडिशन देने के दौरान, अरविंद ने एक साधु का किरदार निभाने की उम्मीद की थी। लेकिन उनकी आवाज और हावभाव को देखकर रामानंद सागर ने उन्हें रावण का रोल ऑफर किया, जिसने उनके जीवन को बदल दिया।


'रामायण' की सफलता के बाद, वह घर-घर में रावण के रूप में पहचाने जाने लगे। कई लोग उन्हें असली रावण समझने लगे थे, और कुछ तो उन्हें अपने घर बुलाने से भी कतराते थे। अरविंद ने एक इंटरव्यू में कहा था, "लोग मुझे खलनायक समझते हैं, लेकिन मैं असल में बहुत धार्मिक इंसान हूं।"


रामायण की सफलता के बाद, उन्होंने राजनीति में कदम रखा और 1991 में गुजरात के साबरकांठा से लोकसभा सांसद बने। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के सदस्य के रूप में पांच साल तक संसद में कार्य किया। इसके बाद, 2002 में उन्हें सेंसर बोर्ड (सीबीएफसी) का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया।


अरविंद त्रिवेदी को अपने अभिनय के लिए गुजरात सरकार से सात बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला। 6 अक्टूबर 2021 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उनके निधन पर रामायण के सह-कलाकारों ने भावुक श्रद्धांजलि दी।


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